Thursday, January 23, 2014

रासायनिक खाद खेत करे बर्बाद



 
रासायनिक खादों से जमीन खराब होती जा रही है। गोबर की कम्पोस्ट एवं वर्मी कम्पोस्ट के प्रयोग पर इसलिए बल दिया जा रहा है ताकि जमीन को खराब होने से बचाया जा सके और खाद्यान्न की गुणवत्ता को ठीक रखा जा सके।
दिलीप कुमार यादव अच्छी उपज के लिए रासायनिक खादों का प्रयोग बेहद तेजी से बढ़ रहा है और उससे ज्यादा तेजी से जमीन बंजर हो रही है। यह बात अलग है कि हिन्दुस्तान के किसान कई विकसित देशों के किसानों के मुकाबले रासायकनिक खादों का प्रयोग अभी कम कर रहे हैं लेकिन रसायनों का प्रयोग करने का उनका तरीका गलत होने से दिक्कतें ज्यादा बढ़ रही हैं। वह उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर नहीं करते। इसके चलते कई तत्वों की अधिकता दूसरे तत्वों को प्रभावित करती है। इसका असर चारे और दाने में तत्वों के असंतुलन के रूप में सामने आता है।
यह मानव और पशु स्वास्थ्य की पूरी श्रृंखला को बिगाड़ रहा है।
हालात यह हो गए हैं कि अब अंधाधुंध रासायनिक खाद डालने के बाद भी उपज नहीं बढ़ रही है। ज्यादा रासायनिक खादों के प्रयोग से खाद्यान्नों में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की संरचना में परिवर्तन की संभावना भी वैज्ञानिक जता चुके हैं।
खेती के मामले में अग्रणी राज्य पंजाब में रासायनिक मृदा और भूगर्भीय जल तक दूषित हो चुका है। कई रिपोर्ट दर्शाती हैं कि वहां के पेयजल में भी कई हानिकारक तत्व संक्रामक रोगों को बढ़ाने लगे हैं। यहां मिट्टी में फॉस्फोरस की मात्रा जरूरत से बहुत ज्यादा होने के कारण पंजाब की मृदा क्षारीय होती जा रही है।
जमीन में पोटाश और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है। इसके अलावा फॉस्फोरस की अधिकता के चलते जमीन में जिंक एवं तांबा तत्व की कमी हो रही है। किसी एक रसायन के बढ़ने से अन्य तत्वों की संरचना प्रभावित होती है जो जमीन और खेती पर बुरा असर डालती है। इसके अलावा अहम बात यह भी है कि कम पानी वाले इलाकों में रासायनिक खादों का ज्यादा प्रयोग जमीन को ज्यादा तेजी से खराब करता है।
किसान फसल को हरा-भरा बनाने के लिए ज्यादा यूरिया का प्रयोग करते हैं। इसका भी फसल पर बुरा असर पड़ता है।
यूरिया डालने से मृदा अम्लीय हो जाती है। इसके अलावा कई पोषक तत्वों की पौधों को उपलब्धता पर भी बुरा असर पड़ता है। किसानों ने गोबर की खाद डालनी बंद कर दी है। यह इसलिए भी हुआ है क्योंकि किसानों के यहां अब पशु भी नहीं रहे हैं। पशु हैं भी तो गोबर के उपले बनाए जाते हैं। लकड़ी के संकट ने गोबर को आग जलाने के लिए ईंधन में प्रयुक्त करने की प्रवृत्ति बढ़ा दी है। गोबर या अन्य कम्पोस्ट खाद में पाए जाने वाले बैक्टीरिया मिट्टी में सूक्ष्म जैव क्रिया करते हैं। कच्चे कचरे को सड़ाते हैं। पौधों को जिस रूप में जो तत्व चाहिए उसी रूप में पहुंचाने का काम करते हैं। खेत में नमी बढ़ाते हैं। इससे पानी की भी ज्यादा आवश्यकता नहीं होती।
इसके अलावा उत्पाद में सभी तत्वों का संतुलन बराबर रखते हैं। बरेली में उपकृति निदेशक प्लांट प्रोटेक्शन अशोक कुमार तेबतिया का कहना है कि रासायनिक खादों से अच्छी उपज लेने के लिए गोबर आदि की कम्पोस्ट का प्रयोग हर हालत में बढ़ाना होगा।
केवल रासायनिक खादों से काम नहीं चलेगा।
उन्होंने यह भी बताया कि किसानों को खराब हो रही जमीन को सुधारने के लिए हर साल खेतों में जिप्सम का प्रयोग शुरू करना होगा। इसके अलावा डीएपी की जगह एनपीके और सिंगल सुपर फॉस्फेट से बुवाई की आदत बनानी होगी।
तभी खेतों की हालत में सुधार हो सकता है।
किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बहरीन- 1953 बैलारूस- 2705 चीन- 548 इजिप्ट अरब- 605 मलेशिया- 1096 न्यूजीलैण्ड- 1277 कतर- 6105 सिंगापुर- 3131 भारत- 178 (सभी आंकड़े वर्ष 2010 तक एफएओ के आधार पर) किस देश में कितना उर्वरक प्रयोग